Srijan
सोमवार, 28 अप्रैल 2025
अपनो को पाए है
करुणा और क्रंदन के
गीत यहां आए है
सिसकती हुई सांसे है
रुदन करती मांए है
दुल्हन की मेहंदी तक
अभी तक सूख न पाई
क्षत विक्षत लाशों में
अपनो को पाए है
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