कह रही कुछ पंक्तिया है
होते अंकित भाव है
बीज होते अंकुरित है
और मिलती छाँव है
महकती हर क्यारिया है
फल रही हर नस्ल है
बादलों में जल भरण है
मार्ग के भटकाव है
बारिशो में बूँद छम छम
तृप्त धरती नेह है
लौट आई आज चिड़िया
घोसले में गेह है
बह चली चंचल नदिया
बह चली हर धार है
हो गया पुलकित यौवन
और दमकी देह है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें