आंसुओ से भरी रह गयी गगरी
सूनी ही रही प्यार की नगरी
धीरज भी इम्तिहान देते देते टूट गया
संघर्षो का प्रियतम
ओ पुरुषार्थी यौवन
तू कहा पर खो गया
जीवन का रस लुट गया
मन की भाषा जाने कौन
संवेदनाये बहरी
प्रीत गीत हो गए मौन
चोटे भी खायी गहरी
भावो की गहराईया
प्यार की परछाईया
दर्द की रुबाईया
भूल गया रे भूल गया
याद थी जो भूल गया
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