कड़े सुरक्षा के घेरो में रहे निरंतर जो पहरों में
छुपी हुई है निष्ठुरता तो कुर्सी के कुत्सित चेहरों में
जटिल प्रक्रियाओं में घिर कर मिटी योजनाओं की स्याही
संवेदना का का स्वांग रच रही शोषणकारी नौकर शाही
कैद हो गई है जनता की किस्मत अब तो उन्ही करो में !!1!!
धसे हुए है प्रगति पहिये बिकी हुई सम्पूर्ण व्यवस्था
थकी हुयी बेहाल जिंदगी ढूंढ रही खुशहाल अवस्था
समाधान के सूत्र खोजती बीत गई आयु शहरों में !!2!!
यश वैभव की ऊँची मीनारे कलमकारों को ललचाये
चाटुकारिता के हाथो में राज्य नियंत्रण रह जाए
सिमट गए सुख के उजियारे चमचो के आँगन कमरों में !!3!!
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न बिकती हर चीज
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