शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

नव जीवन है प्राण



अब रिश्तों में जान नहीं  
रहा नहीं है स्नेह 
सम्वेदना से शून्य  हुए 
गहरे है संदेह 

जीवन से अब चला  गया 
कुदरत से  अनुराग 
संबंधो  की  शाख  कटी 
लगी  हुई  है  आग 

सपनों  में  आनंद  रहा 
सपनों में  अरमान 
जीवन मे अब  शेष  बची 
झूठी केवल  शान 

उनका  अपना  शौक  रहा 
उनके  रहे  सवाल 
चुभती सी  ही  बात  कही 
खीच गई  है  खाल 

हृदय में  कुछ  और  रहा 
बाहर से कुछ  और 
चेहरों  पर मुस्कान  रहे 
भीतर से  घनघोर 

तू  अपनी  एक  ऐब  बता 
कर ख़ुद  का  निर्माण 
खुद ही से  परिवेश  रहा 
नव  जीवन  है  प्राण 

जग में  अपना  कोई  नहीं  
सब है  रिश्तेदार 
जो  भी अपना कहने  लगे 
हिस्से के  हक़दार 

4 टिप्‍पणियां:

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा  किया है विष का पान  जीवन के कई अर्थ बुने  उसका  हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं  कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...