शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

संतुष्टि तो मन की अवस्था है

संतुष्टि का कोई पैमाना नहीं होता
कोई व्यक्ति एक बूँद पाकर संतुष्ट हो सकता है
कोई व्यक्ति समुन्दर पाकर संतुष्ट नहीं होता
संतुष्टि तो मन की अवस्था है
असंतोष की कोई सीमा नहीं होती
असंतुष्ट व्यक्ति को जितना मिल जाय कम है
असंतुष्ट व्यक्ति को संतुष्ट करना 
बहुत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
असंतुष्ट व्यक्ति का साथ होता बहुत दुखदायी है
संतोषी व्यक्ति ने सदा ही खुशिया बरसाई है
संतुष्ट वह व्यक्ति है जो भीतर जो संत है
भीतर की सत्ता की संतुष्टि का स्तर अनंत है
संतुष्ट मीरा थी 
जिसने गरल को पीया तो अमृत पाया है
संतुष्ट संत रसखान थे 
जिन्होंने धर्म को पूजा नहीं जिया है
इसलिए  सदा संतुष्ट रहो
असंतुष्ट रह कर कभी नहीं निकृष्ट और दुष्ट रहो

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