शनिवार, 22 मार्च 2014

पेड़ बचा लो छाया पा लो

दिल में दर्द भरा तो छलका 
आँखों में भावो का जल 
नदिया निर्झर की धाराये
बहती जाती है कल -कल 

 बारिश छम छम नाच रही है
 बाँध रखे घूँघरु पायल 
 चमकी बिजली  गिरते ओले
  नभ पर गरजे है बादल        
 मौसम की होती मनमानी 
उठती लहरो की हल चल 
 मीठी वाणी कोयल रानी 
भींगी राहे है खग -दल 

मरुथल मांग रहा है पानी 
बालू रेती हुई पागल 
घायल साँसे वृक्ष कँटीले 
दुर्गम  राहे बिछड़ा दल 
फाग अनूठे मस्त सुरीले
मस्त हवाये हुई चंचल 
उजड़े वन तो व्याकुल जीवन 
जंगल जंगल है दल दल 

चींटी मकड़ी तितली रानी
 में भी होता अतुलित बल 
प्यासे को पानी  की बूंदे 
बूँद दे रही कुछ  सम्बल
पेड़ बचा लो छाया पा लो 
निखरा होगा भावी कल 
बारिश से नदिया पूर होगी 
 होगा मीठा निर्मल जल 

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