मंगलवार, 12 मई 2015

माँ और मैं

माता से यह देह मिली माता से संस्कार
माँ के पावन चरणों में वंदन बारम्बार

माँ ममता को बाँट रही माता का वात्सल्य
माँ से मुक्ति मार्ग मिला माता से केवल्य 

माँ का चेहरा भूल गया भुला न पाया स्नेह
हर धड़कन माँ व्याप्त रही व्यापे मन औ देह 

माँ ने अब तक दुःख सहा सुख न पायी माँ
माँ मिटटी बन मिट गई दुःख से काँपी माँ 

कांप गया नेपाल यहाँ आया जब भूचाल
धरती माता हिल रही पूछती रही सवाल 

काया थर थर काँप रही जीर्ण शीर्ण है देह
बूढ़ी आँखे तरस रही मिला न निश्छल स्नेह

 

रविवार, 3 मई 2015

एक दृश्य -भूकम्प

आज वहा उजड़े कई  घर है 

बिखरे परिवार है 

कुछ लोग जो कल तक जीवित थे 

गुमशुदा या  विदा है

ऊँची  -ऊँची  अट्टालिकाएं 

जो कल तक थी इतरा रही 

हो गई कुछ ढेर 

जो बची है वे हो जायेगी ढेर देर -सबेर 

एक बच्चा और एक औरत 

तलाशते है सामान को 

मिल जाए टूटे घर में से 

कुछ बरतन खान पान को 

पर मिलता नहीं यह कुछ

मिलता है मलबे के ढेर में 

एक माँ को बेटे का 

एक बेटे को माँ का 

एक पत्नी को पति का शव

रोते  बिलखते परिवार 

बच्चो की किलकारिया

 ममता से वंचित शैशव 

 


 



 





शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

जीवन जल की धारा सा

आसमान में तारा सा 
जीवन जल की धारा सा 

बहती हुई हवाये  है 
सुख दुःख इसमें पाये है 
हारा सा दुखियारा सा 
खट्टा मीठा खारा सा 

किस्मत किसने पाई है
 सुख सपने परछाई है 
सपना एक कुंवारा  सा 
जीवन दर्द दुलारा सा

जल निर्मल कोमल हो मन 
परिवर्तन जीवन का धन 
 सूरज के उजियारा सा 
जीवन  सबसे प्यारा सा


सोमवार, 29 दिसंबर 2014

उम्मीदे कुछ और है

मार्ग में संघर्ष है
 संघर्ष के कई दौर है 
संघर्ष में उत्कर्ष है 
उत्कर्ष का नहीं छोर है 
राह में कांटे बिछाये
 मुश्किलें कितनी भी आये 
मौत भी न जीत पाये 
उम्मीदे कुछ और है 

हर खुशी दुःख से बड़ी है
मुश्किलो से वह लड़ी है 
लौट आओ उम्मीदे तुम 
मंजिले चौखट खड़ी  है 
आज के भीतर रहा कल 
अंकुरित बीज फिर बना फल 
हर प्रतीक्षा है परीक्षा 
यहाँ परीक्षा की झड़ी  है

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

जन जन में खुशिया छाई है

लोक अदालत आई है ,जन जन में खुशिया छाई है 
कर लो बहना राजीनामा ,प्रेम सुधा सुख दाई है

सेवा ही संकल्प हमारा ,सेवा ही अभियान है 
न्याय दान ही महादान है निर्धन का सम्मान है 
न्याय शुल्क से पा लो मुक्ति, न्याय भागीरथी आई है 

मत भेदो  को दूर कर प्यारे ,नवयुग का आव्हान है 
प्री लिटिगेशन प्री बार्गेनिंग ,यह विधि का वरदान है 
विधि है मूर्ति विधि से पूर्ति ,हर मुश्किल हट पाई है

सोमवार, 3 नवंबर 2014

भाव के नहीं ईख है

जिंदगी है धार नदिया  है 
दर्द है तकलीफ है 
हार तो मिलती रही है 
जीत में कहा सीख है 
चाहतो के मिल रहे शव
,राहते  मिलती नहीं है 
प्यार की तुलसी है झुलसी 
नहीं वक्त की मिली भीख है

हर तरफ चिंगारियाँ है 
किलकारियाँ है चीख है 
प्यास ठहरी अधबुझी है
फिर मिली कालिख है
विष घोले  है सपोले  
होले  होले मन टटोले
नीम करेले है कसैले 
भाव के नहीं ईख है

आई याद मां की