रविवार, 23 अगस्त 2015

राखी में आशा समाई

दर्द के हालात है, या फिर यहाँ कुछ और है 
आचरण छल से भरे है , हर आवरण में चोर है
विशिष्ट न अब  शिष्ट रह गए , विशिष्ट अब निकृष्ट है
शुध्द न पर्यांवरण है, दिखती नहीं कही भोर है 


अश्रु से आँचल भरा है ,आँख रोई है भींगोई
पीड़ा क्रीड़ा कर रही है, ,माँ तो बैठी है रसोई 
भैया भाभी ले गए है ,राजू अम्मा रह गए है 
राखी न आई कही से ,आये न बहना बहनोई 

बहना  हो गई है पराई 
बहना की राखी है आई 
राखी में रहती सुरक्षा 
 राखी में आशा समाई 
 





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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज