शनिवार, 22 अगस्त 2015

एक मुलाक़ात बाकी है

छू  लो नभ को सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए
अभी भी बहुत साहस है कुछ  सांस  बाकी है 

पा लो खुशियो को हालात से लड़ते हुए 
संघर्षो का साथ जज्बातों की बरात बाकी है 

जी लो हर पल को उल्लास से बढ़ते  हुए 
जीवन नहीं है नीरस रस भरा मधुमास बाकी है 

बुझा लो प्यास अंजुली भर आचमन से 
बहुत ताजा है पानी पूरी बरसात बाकी है 

बहुत किलकारियाँ भीड़ है चहु शोर है 
मिले ख्वाईश को पंख एक मुलाक़ात बाकी है

1 टिप्पणी:

  1. जी लो हर पल को उल्लास से बढ़ते हुए
    जीवन नहीं है नीरस रस भरा मधुमास बाकी है

    जीवन के रस को बिखराती हुई सुंदर पंक्तियाँ..

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज