रविवार, 5 जनवरी 2020

नव संवत्सर मंगलमय हो

नवीन वर्ष में नवीन हर्ष हो 

नई सोच हो नया जोश हो

नई नई आशा और भाषा

 गढ़ी हुई अभिनव परिभाषा

साथ रहे जजबात नए हो 

जीवन मे दिन रात नए हो

नया नया घर का हर कोना

सुख सपनो का रहे बिछौना 

चपल उमंगे नवल तरंगे

कटती लुटती उड़ी पतंगे

नई नई श्रध्दा हो भक्ति

नई नई कविता अभिव्यक्ति

नई साधना नई हो सूक्ति

नव आराधन हो जाये मुक्ति

 नई पवन हो नया गगन हो

उर में रहती नई अगन हो

नई कामना नई लगन हो

जीवन सारा रहा मगन हो

नवीन क्षितिज हो नया सवेरा

नया नया हो सूरज मेरा

नए वर्ष का नया हो फेरा

भाव सुनहरा जग मग चेहरा

प्राची में अरुणाई नव हो

तेज धवल तरुणाई नव हो

नवीन निशा जब गहराई हो

नवल चेतना भर आईं हो

सांझ सुनहरी घिर आई हो

करुणिम मां की परछाईं हो

सजल आंख हो भर आईं हो

नवल वर्ष का नया बसेरा

मधु खग कलरव बाग में डेरा

 तरुवर जलचर सरोवर ठहरा 

चित में चिंतन हो जाए गहरा

पल पल हर पल जीवन लहरा

नवल पताका का ध्वज फहरा

नवल चेतना नवल पिपासा

नही निराशा हर पल आशा

पल पल तोला हर पल माशा

सत के रथ का अभ्युदय हो 

तन मन मे ऊर्जा अक्षय हो

अंतिम जन का अंत्योदय हो

सज्जन की शक्ति संचय हो

रहती करुणा मन निर्भय हो

नव संवत्सर मंगलमय हो


1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज