शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

नवीन वर्ष के हाथ रही

अंधियारा है काँप रहा 
 काँप रही है भोर 
नवीन वर्ष के हाथ रही 
 भावी कल की डोर
सपने हो आकार लिए
 अर्जुन या एकलव्य
उजियारा चहु और रहे 
 सबके सपने भव्य
अन्तर में है आग लगी 
बाहर भी है शोर
तृप्ति का है मार्ग सही
 तृष्णा का न जोर
उनका अपना जोर रहा 
 उनकी अपनी चाल 
जैसी जिसकी नियत है  
उसका वैसा हाल
आनंदित आकाश हुआ  
आंनदित उपवन 
आनंदित हो बात करो
हो मौलिक  दर्शन
जीवन है श्मशान नही 
पावन है स्थान 
अपनो को तू गले लगा 
क्यो करता प्रस्थान

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा  किया है विष का पान  जीवन के कई अर्थ बुने  उसका  हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं  कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...