ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
तटो पर ठिठुरते टर्राते है मेंढक !! ध्रुव पद!!
सर्दीले दिन होते ,सर्दीली राते
शीतल पवन करती शर्मीली बाते
हिमगिरि से आते हिमगिरि से आते
खुश्बू भरे पल तो हिमगिरि से आते
लगती है ठंडक चिपकती है ठंडक
घरो से निकलते ही लगती है ठंडक !!१!!
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अंधेरो को चीरती हुई आती बयारे
शीतल निर्मल जल तो फसले सॅवारे
बिछाये है मौसम ने कोहरे के मोहरे
हुई यादो सी धुंधली ठिठुरती दोपहरे
सभी हुए बन्धक सभी हुए बन्धक
विस्मित है प्रबन्धक,सभी हुए बन्धक !!२!!
,,,,,,,,,,,,,,,,ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
हरी होती जाती है गेहू की बाली
सॅवरती है सजती है मिटटी की थाली
मौसम के य़ौवन ,ने फसले सम्हाली
लोगो के चेहरो पर दिखती दिवाली
धरा से गगन तक चतुर्दिक क्षितिज तक
तने हुये मंडप ,तने हुये मंडप, तने हुये मंडप!!३!!
..................ठहरती ठुमकती ठिठकती है ठंडक
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