रही सही जनता कि ,टूट गयी आस
राजनैतिक सामाजिक,मूळयो का हास
संसद के भीतर अब ,छिड गयी जंग
लोहिया के चेलो ने ,बदले है रंग
लोकनायक जे-पी का ,उडता उपहास
गांधी के सपनो का ,कहा गया देश
विदेशी चिंतन है ,खादी का वेश
भारतीय मूल्यो को ,मिलता वनवास
महंगाई आई है तो ,रूठ गये प्राण
छिन गयी रोटी है,निर्धनता निष्प्राण
अन्ना जी करते है ,अनशन उपवास
फैली है चहु और बंद और हडताल
शनैः शनैः चलती है जाँच और पडताल
भृष्टो का बंगलो मे होता है वास
दीन हीन को मिलते न ,मौलिक अधिकार
गठबंधन से चलती ,केन्द्रीय सरकार
कालेधन कि होती ,व्यवस्था दास
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अपनो को पाए है
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
-
जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
-
सम्वेदना का भाव भरा खरा रहा इन्सान जीवित जो आदर्श रखे पूरे हो अरमान जो पीकर मदमस्त हुआ हुआ व्यर्थ बदनाम बाधाएँ हर और खड़ी...
-
जीवन में खुश रहना रखना मुस्कान सच मुच में कर्मों से होतीं की पहचान हृदय में रख लेना करुणा और पीर करुणा में मानवता होते भग...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें