गुरुवार, 5 सितंबर 2013

खुशिया

खुशिया मिलती नहीं खुशिया चुराई जाती है
रिश्तो को  सींचने से खुशिया पाई जाती है
जब हम दूसरो को खुशिया देते है तो किसी पर अहसान नहीं करते है
अपने भीतर को खुशियों से संजोते है 
खुशियों में जीते है खुश होकर मरते है
ख़ुशी की अपनी अपनी परिभाषाये है
खुश होकर जिए यह हर जन की आशाये है
पर  आशाये ही रखे यह तथ्य व्यर्थ है
तरह तरह से खुश रहे सही खुशिया पाए ऐसे सुख से हम हुए समर्थ है
ख़ुशी कभी सुख सुविधा से नहीं आती है
सच्ची ख़ुशी अभावो के भीतर आत्मा को निखरा  हुआ पाती है
आत्मीयता की ऊर्जा पाकर जीवन में सक्रियता सदभाव  फैलाती है
आपसी सद्भाव से ही पाया उल्लास है
खुशिया चहु और बिखरी रहे मिलता रहे विश्वास  है

1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज