गुरुवार, 23 जुलाई 2015

चहकी नदिया महका जंगल





बरसी ज्यो बारिश की बूंदे 
प्रियतम चाहत हुई घायल 
चित चोर मोरनी थिरक रही 
छम छम सी बजती बिन पायल 
सरिता में धारा की हलचल 
मद मस्त हिलोरे हुई चंचल 
उठ और पखेरू उड़ता चल 
राह ताक रहे जल के बादल 
आशा क्यों अस्त हुई जाती 
दीपक की बाती  सा तू जल 
हो निर्मल मन उजला सा तन 
चहकी नदिया महका जंगल

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के  गीत यहां आए है  सिसकती हुई सांसे है  रुदन करती मांए है  दुल्हन की मेहंदी तक  अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में  अपन...