रविवार, 8 नवंबर 2015

रहो न केवल मौन यहाँ ,ज़िंदा जगती कौम


लोह पुरुष सरदार थे, लोहे सा संकल्प 
 माटी का अभिमान रहा ,अहम भाव न अल्प 
 
होता झगड़ा रोज है, होता रोज बवाल 
कश्मीर से प्रीत करो ,भारत माँ के लाल 

ऐ.के सैतालिस रही, उग्रवाद के हाथ 
उग्रवाद उन्मत्त रहा ,होती जनता अनाथ 


भर भर झोली लेत रहे ,चले चाल पर चाल  
 रहे दोगले देश यहाँ, लंका और नेपाल

जल न जाए देश यहाँ ,क्यों बनते हो मोम 
रहो न केवल मौन यहाँ ,ज़िंदा जगती कौम

अपनो को पाए है

करुणा और क्रंदन के  गीत यहां आए है  सिसकती हुई सांसे है  रुदन करती मांए है  दुल्हन की मेहंदी तक  अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में  अपन...