राग द्वेष तव चित्त रहा, फिर कैसा उपवास
खुद के ही तुम पास रहो, खुद मे कर तू वास
निज कर्मो पर ध्यान धरो ,निज अवगुण को देख
घटी उमरिया जात रही , मिटी भाग्य की रेख
घटी उमरिया जात रही , मिटी भाग्य की रेख
पूजा में तू लिप्त रहा, पूज्य कर्म पर मौन
शुध्द कर्म और आचरण ,धरता है अब कौन
सदाचार सद वृत्ति रहे, अवगुण कर दू त्याग
माता मन से दूर करो, लालच और अनुराग
सदाचार सद वृत्ति रहे, अवगुण कर दू त्याग
माता मन से दूर करो, लालच और अनुराग
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सौ सुनार की एक लौहार की “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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