शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

कट कट करते दाँत

ठण्डी ठण्डी रात हुई , ठण्डे ठण्डे दिन
पँछी कोमल त्रस्त हुए, काटे हर पल गिन

ठण्ड से बूढ़ा काँप रहा, ठण्ड का अन्त बसंत
ठण्ड की ऋतुये शीत रही, शिशिर और बसन्त

ठण्ड गहराई रात हुई, कट कट करते दाँत
चुपके दुबके चलो कही, ठण्डे है फुटपाथ

अब छुट्टी में मौज नही, छुट्टी भी दो तीन
बढ़ती जाती ठण्ड रही , छोटे छोटे दिन

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा  किया है विष का पान  जीवन के कई अर्थ बुने  उसका  हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं  कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...