पेड़ से पत्ते झरे है
फूल से रस्ते भरे है
सरसराती झाड़ियां है
आ रही कुछ गाड़ियां है
तोड़ते ख़ामोशियों को
झुण्ड में झुरमुट खड़े है
अंतहीन यहा दूरीया है
सैकड़ों मजबूरियां है
पीठ पर्वत है टिकाये
गगन तक गिरीवर चढ़े है
कोई सरगम गा रहा हैं
एक फरिश्ता आ रहा है
ख्वाहिशों के काफिले है
ख्वाब न अब तक मरे है
भेद वो मन का न खोले
मन ही मन सबको वो तोले
वे हिमालय के हैं योगी
स्वर्ण से अब तक खरे है
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