गुरुवार, 28 जुलाई 2022

स्वर्ण से अब तक खरे है

पेड़ से पत्ते झरे है

फूल से रस्ते भरे है


सरसराती झाड़ियां है

आ रही कुछ गाड़ियां है

तोड़ते ख़ामोशियों को

झुण्ड में झुरमुट खड़े है


अंतहीन यहा दूरीया है

सैकड़ों मजबूरियां है

पीठ पर्वत है टिकाये

गगन तक गिरीवर चढ़े है


कोई सरगम गा रहा हैं

एक फरिश्ता आ रहा है

ख्वाहिशों के काफिले है

ख्वाब न अब तक मरे है


भेद वो मन का न खोले

मन ही मन सबको वो तोले

वे हिमालय के हैं योगी

स्वर्ण से अब तक खरे है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज