सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

बेटा सा संगीत




जीवन मे जब  हार मिली हैं 
कही मिली है  जीत 
कोने मे  कहीं  मौन सज़ा  हैं 
कहीं  बजा  संगीत 



मधु के  भीतर  स्नेह  बसा  है 
मधुमय  हैं  मनमीत 
सच्चा प्यारा  राज  दुलारा
बेटा  सा  संगीत 



रविवार, 27 अक्तूबर 2024

सन्नाटों की जीत


सुख सपनों  को लील गये 
लोलुपता और  स्वार्थ 
अब  रिश्तों  में  रहा  नहीं  
जीवन  का  भावार्थ 

हर रास्ते पर  झूठ खडे 
सब दरवाजे  बन्द 
 होठों से हैं फूट  पड़े 
बोलो  की दुर्गन्ध 

किस्मत में है  मिले  नहीं 
खुशियो के कहीं गीत 
बिखरा बिखरा मौन रहा 
सन्नाटों की  जीत 

संवादों  के  पुल  ढहे 
काली काली  रात 
उजियाले भी  दूर  रहे 
छले गये  ज़ज्बात 

पथ पर  कांटे  मिले  जहा
वहीं  मिले  है  फूल 
अनुभव मन  की  याद  रही 
जीवन  का  स्कूल







शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

वहीं रहा गुमराह

होठों  पर  मुस्कान  रखो 
मन  मे  शुध्द  विचार 
मिट जायेगे  दोष  सभी 
मिटेगा  व्याभिचार 

जीवन का  वरदान  मिला  
कर इसका  सम्मान 
श्रम  के  पथ  से  पायेगा 
मंजिल  और  अरमान 

श्रम से  सब  भ्रम  दूर  रहे 
श्रम से  मिले  शिखर 
 जीवन  मे  सब  साध्य  रहे 
श्रम  से  जाये  निखर 


जीवन कोई उद्देश्य नहीं 
 बस खुद  की  परवाह 
राहों  में  है भटक  रहा 
वहीं  रहा  गुमराह 

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

नव जीवन है प्राण



अब रिश्तों में जान नहीं  
रहा नहीं है स्नेह 
सम्वेदना से शून्य  हुए 
गहरे है संदेह 

जीवन से अब चला  गया 
कुदरत से  अनुराग 
संबंधो  की  शाख  कटी 
लगी  हुई  है  आग 

सपनों  में  आनंद  रहा 
सपनों में  अरमान 
जीवन मे अब  शेष  बची 
झूठी केवल  शान 

उनका  अपना  शौक  रहा 
उनके  रहे  सवाल 
चुभती सी  ही  बात  कही 
खीच गई  है  खाल 

हृदय में  कुछ  और  रहा 
बाहर से कुछ  और 
चेहरों  पर मुस्कान  रहे 
भीतर से  घनघोर 

तू  अपनी  एक  ऐब  बता 
कर ख़ुद  का  निर्माण 
खुद ही से  परिवेश  रहा 
नव  जीवन  है  प्राण 

जग में  अपना  कोई  नहीं  
सब है  रिश्तेदार 
जो  भी अपना कहने  लगे 
हिस्से के  हक़दार 

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

स्वारथ की घुड़दौड़

चू -चु करके  चहक  रहे  
बगिया  आँगन  नीड़ 
जब पूरब  से  भोर  हुई 
चिडियों  की  है  भीड़ 

सुन्दरतम है  सुबह  रही 
महकी  महकी  शाम 
सुबह  के  उजियारे  को  
चिड़िया  करे  सलाम 


जब भी  दूर  तक  बात  गई 
हो  गई  पूरी  रात 
घटनाओं का  दौर  चला 
हो  गये  दो  दो  हाथ 

जीवन मे  हर  बार  मिले 
जितने  भी  थे मोड़ 
अब  रिश्तों  की  खैर नहीं 
स्वारथ  की  घुड़दौड़ 

जीवन होता  एक  नदी 
नदी किनारे  गांव 
पगडण्डियाँ  छूट  रही  
कहा गई  है  छांव 

मझधार में फंस गई नैया   
तूफानों के बीच 
तट पर सारे  मिल  गये 
जितने भी थे  नीच 



शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

सब कुछ है उपलब्ध

नीति से  है  न्याय  रहा  
प्रीति  से  सामर्थ्य 
हम सबके  जो  पूज्य  रहे 
उन  सबको  दे  अर्घ्य 

प्रीति  की  कोई  उम्र  नहीं  
प्रीति  की  न  थाह 
प्रीति  की  रीति  से  रहता 
जीवन मे  उत्साह

नियति से  है  भाग्य रहा 
पौरूष से  प्रारब्ध 
जीवन मे  सत्कर्म  करो  
सब  कुछ है  उपलब्ध 


निद्रा  में  जो  शुन्य  रहा 
उस  पर  तू  कर  शोध 
हर  कण मे  वहीं तत्व  रहा 
आत्मा का  हैं  बोध 


गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

माता का वह लाल

खुद ही  से  जो पूछ  रहा 
खुद से  करे  सवाल 
भीतर से  वह  सौम्य  रहे 
माता का  वह  लाल 

जिसको सुख  की  चाह नहीं 
उसको  क्य़ा  दुःख  देत
दुःख  के  रस्ते यही मिले 
क्या मिट्टी  क्या  रेत 

अंतर्मन  को  सींच  रहा 
साधक धर कर  ध्यान 
रस  पीकर  के  तृप्त  हुआ 
आत्मा  हुई  महान 

प्राणों  का  है  बीज़  रहा 
आत्मा  सूक्ष्म  शरीर 
निज को जो पहचान सका 
वो होता है सुधीर 
माँ  काली  रानी  ताल रीवा 


बेटा सा संगीत

जीवन मे जब  हार मिली हैं  कही मिली है  जीत  कोने मे  कहीं  मौन सज़ा  हैं  कहीं  बजा  संगीत  मधु के  भीतर  स्नेह  बसा  है  मधुमय  हैं  मनमीत ...