बसे घर को सदा से सजाते रहे है
नंदन उपवन में बगिया लगाते रहे है
अंधरे में दीपक जला नहीं पाए
उजाले में सूरज उगाते रहे है
निर्झर का पतन गुगुनाते रहे है
मरुथल को तरसना सिखाते रहे है
उगते अंकुर को जल पिला नहीं पाए
गहरे सिंधु में सरिता बहाते रहे है
नयन में समंदर बसाए हुए है
अगन को ह्रदय में समाये हुए है
हिमालयी वादे इरादों के लिए
श्रम सीकर की सरिता बहाए हुए
नंदन उपवन में बगिया लगाते रहे है
अंधरे में दीपक जला नहीं पाए
उजाले में सूरज उगाते रहे है
निर्झर का पतन गुगुनाते रहे है
मरुथल को तरसना सिखाते रहे है
उगते अंकुर को जल पिला नहीं पाए
गहरे सिंधु में सरिता बहाते रहे है
नयन में समंदर बसाए हुए है
अगन को ह्रदय में समाये हुए है
हिमालयी वादे इरादों के लिए
श्रम सीकर की सरिता बहाए हुए
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