ओ जीवन वस्तुत तुम क्या हो
अपने स्वरूप का परिचय बता दो
यह तो सुनिश्चित की तुम वह नहीं हो
जिसे कहते है हम दुखियारे पुष्पों की लता
प्रभाती पवन का सुखद स्पर्श
पुलकित हुआ मन छाया है हर्ष
जीवन की मधुरता क्या तुम यही हो
जो साँसों में समाकर नसों में बही हो
ओ जिंदगी क्या तुम यही हो
औस की जो बूंदे खिली हुई थी दूब पर
सुखद और शीतल अनुभूति तुम्ही हो
प्रफुल्लित फूलो के सुगंध की तरह से
उपवन से बहकर शहद में रही हो
ओ जिंदगी शायद तुम यही हो
भवरोंकी उमंगो से हम तो अपरिचित
जीवन का कुसुम फिर कैसे हो सुरभित
तूफान की तरंगो से नैया है पीड़ित
सृजन की लहर भी कभी तुम रहे हो
ओ जिंदगी वास्तव में तुम यही हो
सृजन की पूजन के जो स्नेही बने हो
रविवार, 24 अप्रैल 2011
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