रविवार, 24 अप्रैल 2011

ओ जीवन तुम क्या हो ,?

ओ जीवन वस्तुत तुम क्या हो
अपने स्वरूप का परिचय बता दो
यह तो सुनिश्चित की तुम वह नहीं हो
जिसे कहते है हम दुखियारे पुष्पों की लता

प्रभाती पवन का सुखद स्पर्श
पुलकित हुआ मन छाया है हर्ष
जीवन की मधुरता क्या तुम यही हो
जो साँसों में समाकर नसों में बही हो
ओ जिंदगी क्या तुम यही हो

औस की जो बूंदे खिली हुई थी दूब पर
सुखद और शीतल अनुभूति तुम्ही हो
प्रफुल्लित फूलो के सुगंध की तरह से
उपवन से बहकर शहद में रही हो
ओ जिंदगी शायद तुम यही हो

भवरोंकी उमंगो से हम तो अपरिचित
जीवन का कुसुम फिर कैसे हो सुरभित
तूफान की तरंगो से नैया है पीड़ित
सृजन की लहर भी कभी तुम रहे हो
ओ जिंदगी वास्तव में तुम यही हो
सृजन की पूजन के जो स्नेही बने हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तू कल को है सीच

जब ज्योति से ज्योत जली जगता है विश्वास जीवन में कोई सोच नहीं वह  करता उपहास होता है  जो मूढ़ मति  जाने क्या कर्तव्य जिसका होता ध्येय नहीं उस...