यहाँ वहा इधर उधर जाते है जिधर
सुनाई देता है बस एक यही स्वर !
कौनसी जाति कुल गौत्र के हो बंधुवर ?
सुनते ही मन की सारी उमंगें तरंगे
जाने कहा खो गई
निर्जीव सी हो गई तन की चेतना
कुछेक पलो के लिए
टूटी जब तंद्रा तो चिंतन के द्वार पर खड़े थे
वे सारी विभूतिया जो हुए थे सिर्फ कर्म से महान
और यहाँ कुछ व्यक्तियों को अपने कुल पुरुषो की उपलब्धियों पर है गुमान
भले ही उनके द्वारा स्थापित आदर्शो का ज़रा भी न भान
फिर भी यदा कदा यत्र तत्र करते रहते है उनका बखान
अरे भाई नव युग ने ली अंगडाई बहुआयामी क्रांति के दौर में कई नवीन धाराए आई
और तुम्हारी बुध्दी से अभी तक यह धुल हट नहीं पाई
यह दुनिया उसकी ही हो पाई जिसने स्वयं श्रम पुरुषार्थ के सहारे अपनी अलग पहचान बनायीं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई चीन चीज
चीनी से हम छले गये ,घटना है प्राचीन ची ची करके चले गए, नेता जी फिर चीन सीमा पर है देश लड़ा ,किच किच होती रोज हम करते व्यापार रहे, पलती उनकी फ...
-
ऊँचे पर्वत मौन खड़े, जग में सीना तान इनसे नदिया नीर बहे, उदगम के स्थान गहरी झील सी आँख भरी, बोझिल है आकाश पर्वत टूट कर रोज गिरे, जंगल की है ...
-
उसके गुण का गान करो , जिसमे हो संस्कार कर्मठता का मान करो , कर्मो का सत्कार जिसमे थी सामर्थ्य नही ,मिली उन्हें है छूट दानव दल को बाँट रहा, ...
-
जिव्हा खोली कविता बोली कानो में मिश्री है घोली जीवन का सूनापन हरती भाव भरी शब्दो की टोली प्यार भरी भाषाए बोले जो भी मन...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें