रविवार, 8 जुलाई 2012

कल की चिंता

सिसकता हुआ आसमान है ,आंसू के प्याले है
तुम्हारी यादो में खोये है ,कहलाये दिलवाले है 

बरसते बादल नहीं , अब बरसती है आँखे
तुम्हारे देह की गंध को, हम आज भी सम्हाले है 

सम्पूर्ण  परिवेश में ,व्याप्त कल की चिंता है 
 
ताजे चिंतन से ही तो, हम हर हल निकाले है 

रोज -रोज आ जाता है ,ख्यालो में कोई
तमन्नाओं के बल पर, वे कहा मिलने वाले है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज