मंगलवार, 27 नवंबर 2012

भावो का दीप


रूप तेरा अाज है, कल ढल जायेगा
तेरी मुठ्ठि से पल पल ,फिसल जायेगा
तू कंचन काया को ,सम्हाल कर रखना
अाईना तेरे रूप को ,निगल जायेगा

दुर्भाग्य की लकीरे ,बहुतेरो को रुलाती है
कर्म की दीपिका, सौभाग्य को बुलाती है
हे!मनुज परमार्थ कर ,निस्वार्थ से पुरुषार्थ कर
पुरुषार्थ से तकदीरे है ,प्रारब्ध को हिलाती है

रूप दीप शिखा मे ,जल जाता परवाना है
प्रीत की दीप्ति मे ,मिट जाता दिवाना है
भावो का दीप ,सबसे समीप होता है
भावनाअो से जुडा, परवाना है दिवाना है

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