बुधवार, 13 जनवरी 2016

व्यष्टि और सृष्टि

सृष्टि में समष्टि और
समष्टि में व्यष्टि समाहित है
सृष्टि में जल वायु बच जाए तो सुरक्षित है
व्यष्टि ने समष्टि
समष्टि ने सृष्टि को किया दूषित है
सृष्टि में वृष्टि शीत कही होती है कम
कही होती अपरिमित है
शहर गाँव सड़क खेत
सभी होते आप्लावित है
मिल जाए कही निर्मल जल
स्वच्छ वायु तो लग जाए चित है
निज स्वास्थ्य हमारा मीत है
सृष्टि का आरम्भ है मध्य है
और अंत भी सुनिश्चित है
पर अंत तक चेतना जीवित है
इसलिए हे  व्यष्टि तुम समष्टि के संग
अपनी सृष्टि को बचाओ
सृष्टि रस द्रव्य कण में
परम तत्व को पाओ

1 टिप्पणी:

न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज