शुक्रवार, 14 मई 2021

फिर हो आखातीज

अक्षत धन आरोग्य रहे , प्राणों से भरपूर
नैसर्गिक अनुराग रहे , रोगों से हो दूर

उत्सव सारे छूट गये, टूट गये सब प्रण
लोगो मे सामर्थ्य नही , कोरोना का व्रण

गौरैया भी लुप्त हुई, भटकी दर दर गाय
पंथ हुये है वृक्ष विहीन , प्राण कहा से पाय

कितने ही प्रतिरूप रहे, कोरोना विकराल
प्यारी सी हरियाली को , क्यो न रहा सम्हाल

अक्षय धन आरोग्य रहे, फिर हो आखातीज
प्राणों का आव्हान करे, उम्मीदों के बीज

खोई खोई रही जिंदगी , पाया नही पराग 
भँवरे गुंजन कहा करे,  न उपवन है बाग

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा  किया है विष का पान  जीवन के कई अर्थ बुने  उसका  हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं  कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...