नैसर्गिक अनुराग रहे , रोगों से हो दूर
उत्सव सारे छूट गये, टूट गये सब प्रण
लोगो मे सामर्थ्य नही , कोरोना का व्रण
गौरैया भी लुप्त हुई, भटकी दर दर गाय
पंथ हुये है वृक्ष विहीन , प्राण कहा से पाय
कितने ही प्रतिरूप रहे, कोरोना विकराल
प्यारी सी हरियाली को , क्यो न रहा सम्हाल
अक्षय धन आरोग्य रहे, फिर हो आखातीज
प्राणों का आव्हान करे, उम्मीदों के बीज
खोई खोई रही जिंदगी , पाया नही पराग
भँवरे गुंजन कहा करे, न उपवन है बाग
खोई खोई रही जिंदगी , पाया नही पराग
जवाब देंहटाएंभँवरे गुंजन कहा करे, न उपवन है बाग---बहुत खूब....
धन्यवाद
हटाएंसमय अवश्य बदलेगा और फिर से जीवन खिलेगा
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