प्रतिपल वो उन्मुक्त रहा, इक सेवक हनुमान
सेवा का है मर्म यही , चाहा न प्रतिदान
सौ योजन वो लाँघ गया, राम नाम का बोध
मारुति हनुमान कहे , करो सत्य का शोध
घर के आँगन बेल रहे पीपल का हो पेड़
बूढा बरगद साथ रहे , रहे खेत पर मेढ़
जहां नही अभिमान रहा, वहां रहे हनुमान
धन सत्ता का दर्प हरे, मेरे यह भगवान
कोरोना है मार रहा , कर दो प्रखर प्रहार
दो सबको आरोग्य प्रभो, जग के तारण हार
करुणा में है ईश रहा, सेवा में जगदीश
सेवा से क्यो भाग रहा, सेवक है दस दिश
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