बुधवार, 31 अगस्त 2022

खींची नई लकीर

गणपत  है  विराज  रहे  , साध  रहे  सब  काज 
पग  प्रतिपल  गतिमान  रहे ,पद  कीर्ति  सर  ताज 
पर्वत तो  कैलाश  रहा, गण  के  पति  गणेश 
जीवन  में  शुभ  कृत्य  करे,  सुमति दे  महेश 
मतिमंदो  साथ  नहीं, जीवन  के  आयाम 
गणपति का है राज जहा ,हुए सभी शुभ  काम 
मित भाषी  को  राज मिला,  मुँहफट रहा  फकीर 
जो  अपनी नई राह  चला ,  खिंची नई  लकीर 

ईश्वर वह ओंकार

जिसने तिरस्कार सहा  किया है विष का पान  जीवन के कई अर्थ बुने  उसका  हो सम्मान कुदरत में है भेद नहीं  कुदरत में न छेद कुदरत देती रोज दया कुदर...