शनिवार, 4 जून 2011

dohe

आसमान अरमानो का फैला हुआ अनंत
पीट रहे है क्रूर हाथ संवेदना के ढोल
सहानुभूति के नाम पर करते रहे मखौल !!१!!
दुष्ट शकुनी संग रहे कलयुगी अर्जुन
कर्मक्षेत्र के दंद्व में जीत गए अवगुण !!२!!
आंसू पिए द्रुपद सुता खुले केश है शेष
,अपमानों के बोझ तले धोती है अवशेष !!३!!
थोड़े गम है खुशिया कम ,प्रश्न खड़े ज्वलंत
आसमान अरमानो का फैला हुआ अनंत !!4!!
लोकतंत्र की आड़ में भीड़ -तंत्र का खेल
बूथ केप्चरिंग जो करे नहीं गए वो जेल !!9!!
महंगाई तो खूब बड़ी मूल्य-नियंत्रण फेल
बने चुनावी शस्त्र अब चावल शक्कर तेल !!10!!
राजनीति व्यापार नहीं कह गए है शेषन
नए चुनाव सुधार से नेता को टेंशन !!11!!
राजनीति से लुप्त हुई अब नीती की बात
सत्ता के संघर्ष में हुए घात -प्रतिघात !!12!!
गुटबाजी के खेल में निर्दलीय है मस्त
परिणाम जब पता लगा हुई जमानत जब्त !!१3!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तू कल को है सीच

जब ज्योति से ज्योत जली जगता है विश्वास जीवन में कोई सोच नहीं वह  करता उपहास होता है  जो मूढ़ मति  जाने क्या कर्तव्य जिसका होता ध्येय नहीं उस...