व्यक्ति प्रतीक हो या स्थान
उसे पवित्र बना दो पर
इतना पवित्र बना भी मत दो कि
उनसे दुरी स्थापित हो जाए
उनमे परायापन लगने लगे
उनमे परायापन लगने लगे
किसी व्यक्ति विशेष को
इतना पूजनीय आदरणीय मत बना दो कि
उससे हम अनुकरण न कर सके
और हम उसे सिर्फ पूजते रहे
स्वयं को इतना श्रेष्ठ मत मान लो
कि हम जन सामान्य से दूर हो जाए
ऐसी पवित्रता ऐसा पूज्य होना ऐसी श्रेष्ठता
जो आराध्य को साधक से दूर कर दे
और स्वयं को जन सामान्य को दूर
निरर्थक है मिथ्या है पाखण्ड से परिपूर्ण है
हमें तो ऐसी सहजता चाहिए
और ईष्ट में ऐसी सरलता चाहिए
कि चहु और अनुभूति होती रहे ईष्ट कि
और हम डूब जाए परमानंद में
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