पुकारता तू आसमाँ
निहारता तू भौर है
निहारता तू भौर है
मिला रवि से तेज है
शशि ने हिलोर है
शशि ने हिलोर है
है लक्ष्य पर बढ़े कदम
क्षितिज का न छोर है
क्षितिज का न छोर है
समेट ले तू सारे गम
लगा ले दम किनोर है
लगा ले दम किनोर है
मिली विजय न राह पर
जीवन मरण का दौर है
जीवन मरण का दौर है
ख़ुशी है किसके वास्ते
ख़ुशी से मन विभौर है
ख़ुशी से मन विभौर है
हुई क्यों आँख तेरी नम
मिला नहीं तुझे सनम
मिला नहीं तुझे सनम
धरो चरण करो वरण
सफल न करता शोर है
सफल न करता शोर है
खुद ही से तू है हारता
खुद ही पे तेरा जोर है
खुद ही पे तेरा जोर है
तू ही जीवन संवारता
भीतर तेरे ही ठौर है
सुहाता नहीं ये समा
अभी तो तू किशोर है
भीतर तेरे ही ठौर है
सुहाता नहीं ये समा
अभी तो तू किशोर है
सुबह से ले ले ताजगी
जगेगा पोर पोर है
आज की ब्लॉग बुलेटिन जन्मदिन भी और एक सीख भी... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर । भोर होना चाहिये ।
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