शुक्रवार, 3 मार्च 2017

सपने रहे चकोर

सपनो  का आकाश रहा, सपने रहे बुलंद 
सपनो भी उन्मुक्त रहे, स्वप्न बसी हर गंध 

सपनो का चंदा रहा ,सपने रहे चकोर 
निस दिन सपने काट रहे, सपने क्षण के चोर 

स्वप्न सलौना वही रहा ,खुल गई निंदिया रैन 
प्रियतम नैना ढूँढ रहे, तन मन है बैचेन 

अपनों में क्यों व्यस्त रहा ,सपनो में मत जी 
सपनो में भी चिंतन कर, सपनो को तू पी

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज