निर्धन को न धन मिलता है
धन के बिन कैसा त्यौहार
धन के बिन है मस्त फकीरा
धन हेतु रौता बाजार
धन तेरस पर क्या क्या लाये
धन सच्चा होता व्यवहार
मन निर्धन तो कैसा धन है
तन मन वारो बारम्बार
ऐसा वैसा कैसा कैसा
कदम कदम पर पैसा
पैसो से है जुड़ता रिश्ता
पैसो पर है दारोम दार
धन से न मिल पाया तन है
धन देता केवल श्रृंगार
धन के पीछे सब है भागे
धन से होती है तकरार
धन पे तेरी नियत ठहरी
मन से मन की है दीवार
तू खूब खैले धन से मैले
धन न मिलता है हकदार
सपने तुम कितने भी बुन लो
धन तेरस पर तुम भी सुन लो
खाया पिया नहीं पचाया
धन से भोजन स्वल्पाहार
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