तू अपने ही दोष मिटा
सबका करो सुधार
गुणी हृदय है बहुत बड़ा
गुणता रही उदार
गुणीजन के ही साथ रहो
बन जाओ गुणवान
गुण मिलना है बहुत कठिन
अवगुण है आसान
गुण के हाथों जीत रही
गुण की रही है प्रीत
निश्चल निर्मल भाव जगा
सबका होगा हित
निश्चल मन विश्वास रहा
निर्मल मन मे ईष्ट
सबके जो संताप हरे
होता अति विशिष्ट
निर्मल भाव
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