शनिवार, 21 जून 2014

बदले मन के भाव है

फूल बिखेरे गुलमोहर ने  , गर्म हो रही छाव है 
 ताप दे रही है दोपहरिया , भींग रहे सिर पाँव है 

रस्ते टेड़े  बदहाली के ,पथ पर उड़ती धूल  है 
मानसून में होती  देरी ,शायद हो गई भूल है
जल बिन जीवन कब होता है निर्जन होते गाँव है 

लौट रही न अब यह गर्मी ,सूखा थल से जल है
आज कटे है सुन्दर उपवन ,
नष्ट हो रहा कल है
हे ! बादल तुम क्यों है बदले? बदले मन के भाव है 

सूख गए है घट, तट, पनघट ,रिक्त हुए सब कुण्ड है 
जल बूंदो को तरसे खग दल ,भटक रहे चहु झुण्ड है 
कोयलिया फिर भी है बोली ,कौए  करते कांव  है

 
 
 




 

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