आंधिया उठते बवंडर मार्ग पर अवरोध है
दर्द से गमगीन चेहरे ,युध्दरत हर बोध है
द्वेष की परछाईयाँ है मन में पलते द्व्न्द्व है
बारूदी होती है खुशिया हो रही हुड़दंग है
आस्था घायल हुई है दीखता प्रतिशोध है
माटी से होती बगावत कौनसा प्रतिकार है
राष्ट्र भक्ति क्षय हुई है उन्हें जय से इनकार है
सत्य से भटके विचारक लक्ष्य विचलित शोध है
भ्रम है फैला मन विभञ्जित क्लांत सी तरुणाई है
वृक्ष पर फल है विषैले विष फसले पाई है
शिक्षा से होते न शिक्षित दीक्षित नहीं यह पौध है
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