भंवर फूलो पर रहे है झील रहती नाव है
ताप देती गर्मिया है तप रहे सिर पाँव है
हो कहा पर प्रिय मेरे बोलती है आज टहनी
खो गई जग से शीतलता खोई खोई छाँव है
ताप देती गर्मिया है तप रहे सिर पाँव है
हो कहा पर प्रिय मेरे बोलती है आज टहनी
खो गई जग से शीतलता खोई खोई छाँव है
जल में होती है शीतलता जल निर्मल भाव है
तृप्ति को वन वन भटके सूखते कूप गाँव है
हो कहा पर वत्स मेरे बोलती है आज मिटटी
कट गए है वृक्ष सारे और बिकती छाँव है
तृप्ति को वन वन भटके सूखते कूप गाँव है
हो कहा पर वत्स मेरे बोलती है आज मिटटी
कट गए है वृक्ष सारे और बिकती छाँव है
हो गए अपकृत्य सारे लुप्त जल की आंव हैै
पक्षीगण बून्द बून्द तरसे रोज मिलते घाव है
गई कहा चंचल चिड़िया चहचहाती क्यों नही
गगन सेे अब आग बरसे कब मिलेगी छाँव है
पक्षीगण बून्द बून्द तरसे रोज मिलते घाव है
गई कहा चंचल चिड़िया चहचहाती क्यों नही
गगन सेे अब आग बरसे कब मिलेगी छाँव है
ग्रीष्म ऋतू का सुंदर वर्णन..सावन भी आ ही जायेगा
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