प्रकृति की वंदना का
होता तरीका खास है
निसर्ग में है स्वर्ग रहता
स्वर्ग अब वनवास है
उत्थित हिमाचय के हृदय में
सहजता का वास है
टहनियां और फूल पत्ते
कुदरती उल्लास है
जो रहा निर्भीक सा मन
जिंदगी वह खास है
हट रहा तम हर सवेरे
मन में जगा विश्वास है
फिर नया जीवन पाया
पायी फिर से आस है
हर्ष में है मग्न सारे
जग मग नया आकाश है
स्वर्ग भी उतरा जमीं पर
स्वर्ग का अहसास है
लक्ष्य की एक भूख सी है
हर मन मचलती प्यास है
धर चला अंगुल रथ पर
हे पार्थ क्यो? उदास है
इंदु है वह सिंधु गहरा
बिंदु मे ठहरी आस है
हर कही पाया है उसको
रचता रहा वह रास है
पिय मिलन आतुरता है
टिक रहा विश्वास है
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