शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

टिक रहा विश्वास है

प्रकृति की वंदना का 
होता तरीका खास है
निसर्ग में है स्वर्ग रहता
 स्वर्ग अब वनवास है

उत्थित हिमाचय के हृदय में
सहजता का वास है
टहनियां और फूल पत्ते
 कुदरती उल्लास है

जो रहा निर्भीक सा मन 
जिंदगी वह खास है
हट रहा तम हर सवेरे
मन में जगा विश्वास है

फिर नया जीवन पाया
पायी फिर से आस है
हर्ष में  है मग्न सारे
जग मग नया आकाश है
 

स्वर्ग भी उतरा जमीं पर
स्वर्ग का अहसास है
लक्ष्य की एक भूख सी है
हर मन मचलती प्यास है

धर चला अंगुल रथ पर
हे पार्थ क्यो? उदास है
 इंदु है वह  सिंधु गहरा
बिंदु मे ठहरी आस है

हर कही पाया है उसको 
रचता रहा वह रास है 
पिय मिलन आतुरता है
टिक रहा   विश्वास है

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