स्वार्थ से कितने भरे है आईने
है बदलते प्यार के यहाँ मायने
खो गई इंसानियत तो अब कही
रिश्तो से है रस चुराया भाई ने
इंसानियत अब रक्त रंजीत हो गई है
सद भावनाये अब कहा पर खो गई है
करवटे ले रोज हम रोते रहे
वेदना शामिल जीवन में हो गई है
जो मनुष्यता हमें है पालती
अर्थ गहरे व्यर्थ वह निकालती
शब्द से घायल हुआ जाता है मन
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