दुरभि रही संधिया
और पैतरे कई लाये है
क्योकि
नैतिकता के मायने
नेता जी ने पाये है
झूठी रही दोस्ती
रचते रहे प्रपंच
नेता जी ने साध लिया
लूट लिया है मंच
करुणा और क्रंदन के गीत यहां आए है सिसकती हुई सांसे है रुदन करती मांए है दुल्हन की मेहंदी तक अभी तक सूख न पाई क्षत विक्षत लाशों में अपन...
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