दुरभि रही संधिया
और पैतरे कई लाये है
क्योकि
नैतिकता के मायने
नेता जी ने पाये है
झूठी रही दोस्ती
रचते रहे प्रपंच
नेता जी ने साध लिया
लूट लिया है मंच
लज्जा का आभूषण करुणा के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज ह्रदय मे वत्सलता गुणीयों का रत्न नियति भी लिखती है न बिकती हर चीज
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