रविवार, 11 फ़रवरी 2018

संस्कार

दुरभि रही संधिया
और पैतरे कई  लाये है
क्योकि
नैतिकता के मायने
नेता जी  ने पाये है

झूठी रही दोस्ती
रचते रहे प्रपंच
नेता जी ने साध लिया
लूट लिया है मंच

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज