रविवार, 7 जून 2020

भरी गर्मियों में पारा उसका चढ़ा है

सवेरा सूरज की किरण से लड़ा है 
तमस का शकुनि उधर चुप खड़ा है 

जिसे हर तरफ से है षड्यंत्र घेरे 
रही मुंडमाला है वही मन्त्र फेरे 
चला कर्म के पथ क्षत विक्षत पड़ा है

हुई पस्त काया  छाया की जय है 
रहा  छद्म शत्रु रहा दुराशय है
चला ऐसा युध्द जो निरंतर बढ़ा है 

कभी मस्त मौसम कभी उठते शोले 
रही जब नमी तो बहते है रेले
भरी गर्मियों में पारा उसका चढ़ा है

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न बिकती हर चीज

लज्जा का आभूषण करुणा  के बीज कौशल्या सी नारी तिथियों मे तीज  ह्रदय मे वत्सलता  गुणीयों का रत्न   नियति भी लिखती है  न बिकती हर चीज