है दिल के जो पास
जीवन कोई खेल नहीं
प्रीति का अहसास
मेहंदी रचती हाथ रही
कितना गहरा रंग
होली खेले रंग नये
होली में हुडदंग
जीवन के हैं रंग कई
रंग बिरंगे बोल
तू इक ऐसा रंग लगा
जो अनुपम अनमोल
कितने सारे रंग रहे
कितने सारे रूप
रंगों से तु प्रीत लगा
बैठा है क्यों? चुप
हृदय किनारे प्रीत रहे
हृदय बीच नवनीत
होली मन का मेल हरे
जिये मरे जनहित
सच को कोई आँच नहीं
जीवन मे आल्हाद
होलिका की देह जली
नहीं जला प्रहलाद
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