दिन में ऐसी नींद लगी, आये थे मेहमान
जितने भी थे ले उड़े , लाखों का समान
करवट लेकर नहीं उठा, हुआ भले ही शोर
चूल्हा बेलन चुरा गये, ले गये आटा चोर
घर के आंगन बिछी मिली, रस्सी की एक खांट
अम्मा जी तो चली गई , बाबू जी के ठाट
बरसों से जो उठा रहा, निकम्म्मो का बोझ
जिनका कुछ सम्मान नहीं , करते है वो मौज
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