चाँद तारे से गगन है
दीपिका से है किरण
दीपिका जब न जली तो
चंद्र करता तम हरण
जब अंधेरा हो रहा हो
जगत सारा सो रहा हो
चांदनी चन्दा से मिलकर
रच रही नव व्याकरण
चंद्रमा घटता है बढ़ता
फिर भी न होता क्षरण
बिखरती चौसठ कलाये
सौंदर्य पथ का है वरण
दीप कोई जल रहा हो
तिमिर पल पल गल रहा हो
रोशनी के गीत गा के
कर्म पाता है शरण
( चैत्र माह की तीज पर उदित चंद्रमा के लिये गये चित्र पर रचित रचना)
बहुत सुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएं