बेजुबान परिन्दे है
बोलते हुए घौंसले है
पंख तो सिर्फ फड़फड़ाते
उड़ते तो हौसले है
हौसले से नत मस्तक
सारी य़ह दुनिया है
मेहनत के बिन हुए
वादे यहा खोखले है
संस्कृति और संस्कार की
चिंताए जिन्हें सताती है
तहजीब यहां बोलने की
उनको नहीं आती है
चलती हुई जिंदगी है
न छांव है न पानी है
निगाहें फेर ली जिसने
उनकी ही मेहरबानी है
जिंदगी रोज नये
नंगे सच दिखलाती है
हौसलों को तोड़ती है
फिर मुस्कुराती है
सपनों में न सकूँ
जिसने नहीं पाया है
बेसुरा सा राग है
जिंदगी भर गाया है
अरमान दिल से हमने
निकाल कर फेंके है
गिरते हुए लोगों के
अंदाज गिरे देखे है
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