सूरज का चढ़ता है पारा
नभ में रहता चांद सितारा
गर्मी का यह खेल रहा है
यह जग मौसम झेल रहा है
किस्मत रूठती एक बेचारा
बहा पसीना खारा खारा
जीवन का हर ताप सहा है
मीठा जल अब यहां कहा है
ढूंढ लिया है पनघट सारा
मिली कही न जल की धारा
तपती धरती कहा बिछौना
तपता है घर का हर कौना
कही दुखो की लिखी ईबारत
खुशियों का कही लगता नारा
गर्मी का जब मौसम आता
पतझड़ भी है तब इतराता
पौरुष की लगती जयकारा
मानव में फिर साहस पधारा
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