शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

गर्मी पर गीत


सूरज का चढ़ता है पारा 
नभ में रहता चांद सितारा

गर्मी का यह खेल  रहा है
यह जग मौसम झेल रहा है
किस्मत रूठती एक बेचारा 
बहा पसीना खारा खारा

जीवन का हर ताप सहा है 
मीठा जल अब यहां कहा है
ढूंढ लिया है पनघट सारा
मिली कही न जल की धारा

तपती धरती कहा बिछौना
तपता है घर का हर कौना
कही दुखो की लिखी ईबारत 
खुशियों का कही लगता नारा

गर्मी का जब मौसम आता 
पतझड़ भी है तब इतराता
पौरुष की लगती जयकारा
मानव में फिर साहस पधारा


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